8TH SEMESTER ! भाग- 97( New War-7)
"सही जवाब...अगला सवाल आपके थोबडे के सामने ये रहा....क्या तुम लोग अरमान को जानते हो या फिर उसे कही देखा है..."
"नही.."इसका भी जवाब उसी लड़के ने दिया जिसने मेरे पहले सवाल का जवाब दिया था"हम लोगो को आए हुए दो-तीन दिन ही हुए है...इसलिए हम उसे नही जानते..."
"अरुण....इधर आकर बता तो तुझे धक्का किसने दिया था..."
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जिस टेबल पर मैं उन 7-8 लड़को के साथ बैठा था ,वहाँ आकर अरुण ने एक लड़के की तरफ इशारा किया और मैने अरुण को कहा कि वो जोरदार मुक्का उसके चेहरे मे मारे....
"अबे ओये,बाप का राज है क्या...निकल ले वरना तुझे भी धक्के मार के निकाल दूँगा..."उनमे से एक खड़ा होते हुए बोला...
"पहली बात तो ये बेटा कि ,दोबारा मुझे कभी बेटा मत बोलना."तड से एक झापड़ मारते हुए मैने उसकी कॉलर पकड़ ली"दूसरी बात ये की जिससे तुम इनस्पाइर होकर वो सब कर रहे हो...वो मैं ही हूँ...."
मैं अरमान हूँ ये जानकार उन लड़को का सारा जोश ठंडा पड़ गया और फिर अरुण को सॉरी बोलकर वो वहाँ से खिसकने लगे... जब वो सब कैंटीन से जा रहे थे तो अरुण ने जितना हो सका पीछे से उनको लात -घूँसा मारा.. कईयों का बाल पकड़ कर इधर -उधर टेबल पर पटका ... जिससे गिरते -पड़ते वो वहा से भागे और जब कैंटीन से निकले तो उनमे से एक लड़का पीछे पलटकर गौतम का दोस्त होने कि धमकी दे गया कि...वो मुझे देख लेगा.
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कैंटीन मे ये सब करते वक़्त मुझे अंदाज़ा तक नही था कि मेरी ये हरकत कितना बड़ा रूप लेने वाली है...लेकिन उसके दूसरे दिन जब दंमो रानी क्लास मे खुद की तारीफ कर रही थी तो कॉलेज के एक चपरासी ने क्लास मे आकर मेरा और अरुण का नाम लिया और कहा कि हम दोनो को प्रिन्सिपल सर ने बुलाया है... .प्रिन्सिपल का बुलावा मिलने के तुरंत बाद ही मैं समझ गया कि हो ना हो ये कल कैंटीन वाली हरकत का नतीजा है....और यदि हम दोनो रैगिंग मे फसे तो फिर प्रिंसिपल हमारा सेमेस्टर बैक लगा सकता था,जैसा कि उसने पिछले कई साले से कई लड़को के साथ किया था.... या फिर पुलिस को बुला कर जेल....
सेमेस्टर बैक ...ये एक ऐसा शब्द था जिसने उस वक़्त हम दोनो को अपने डर के साए मे जकड रखा था, दिल पूरी तरह दहल रहा था कि यदि सेमेस्टर बैक लगा तो मैं क्या करूँगा....घरवाले तो जान ही जाएंगे और अरुण का इनस्पेक्टर बाप तो हम दोनो को गोली ही मार देगा....यहाँ एग्जाम्स मे एक सब्जेक्ट पास करने मे पसीने छूट रहे है और ये प्रिन्सिपल डाइरेक्ट सेमेस्टर बैक लगा रहा है.... घर पर कितनी बदनामी होगी, मेरे फर्स्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बाद जिन लोगो के मुँह खुल चुके थे वो और भी खुल जाएँगे...
दिल और दिमाग़ की इस अधेड़बुन मे फसे हुए मैं और अरुण प्रिन्सिपल ऑफीस के अंदर दाखिल हुए...और जैसा कि मैने क्लास से निकलते वक़्त सोचा था,ठीक वैसा ही हुआ....दो लड़के प्रिन्सिपल सर के सामने बैठे हुए थे, जो वही लड़के थे.. जिनसे मेरी मुलाक़ात कल कैंटीन मे हुई थी.
"जेल जाने की तैयारी कर लो तुम दोनो...क्यूंकी इन्होने तुम दोनो के खिलाफ एफ.आइ.आर. कर दी है..."हमारे अंदर घुसते ही एक पेपर पर सिग्नेचर करके प्रिंसिपल ने किनारे रखा और हमें देखते हुए बोला
"What the hell.... Jail..."मैं अंदर ही अंदर चीखा ,चिल्लाया....क्यूंकी वहाँ बैठे दोनो लड़को मे से एक के सर मे तो एक के हाथ मे पट्टी बँधी हुई थी.... जबकि कल तो मार पीट हुई ही नहीं थी, फिर इन दोनों को इतनी चोट कैसे आई...??
"दोनो ने बहुत लंबे से फसाया है...अब तो पक्का घरवालो को खबर होगी..."अंदर ही अंदर जेल के नाम से थरथराते हुए मैने खुद से कहा
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अभी मै और अरुण प्रिन्सिपल के केबिन मे ही खड़े थे कि दो पुलिसवाले अंदर आए और प्रिंसिपल के आदेश पर हम चारो को पुलिस स्टेशन चलने के लिए कड़कती हुई आवाज़ मे कहा...
हमारी पुरानी हिन्दी फ़िल्मो मे अक्सर ये डाइलॉग सुनने को मिलता है जिसमे हीरो का बाप हीरो से कहता था कि "हमारे खानदान मे आज तक किसी ने पुलिस स्टेशन का मुँह तक नही देखा और तू... तू वहाँ बंद था... नालायक, अधर्मी "
मेरे साथ भी कुछ -कुछ ऐसा ही हो रहा था...मेरे खानदान मे कितनो ने पुलिस स्टेशन देखा है...देखा भी है या नही, ये तो मैं जानता...लेकिन मैं पहली बार किसी पुलिस स्टेशन को अंदर से देखने वाला था... जब मैं और अरुण ,उन दोनो फर्स्ट ईयर के लौन्डो के साथ पुलिस की गाड़ी मे बैठे थे,तब मुझे यही डर सता रहा था कि कही हमारी पिटाई ना हो...पुलिस के डंडे का ख़याल आते ही मैं अंदर तक कांप गया...और ये एक ऐसी सिचुयेशन थी जिसकी मैने कभी कल्पना तक नही की थी...जब पुलिस की गाड़ी कॉलेज कैंपस से निकल रही थी तो सभी लड़के -लड़किया हमे बड़े ध्यान से देख रहे थे...उस समय सबका मुझे यूँ देखना मुझे बहुत खराब लग रहा था, मैं बहुत ज़्यादा ही डिप्रेस्ड हो गया और मेरा दिल कर रहा था कि अपने हाथ से अपने चेहरे को छिपा लूँ...अरुण मेरे बगल मे शांत बैठा हुआ शायद यही सोच रहा था कि उसने ये सब शुरू ही क्यूँ किया....
पर यदि मैं अपना चेहरा हाथ से छीपाता तब भी कॉलेज स्टूडेंट्स किसी ना किसी से पुछ के जान ही जाते की वो मैं ही हूँ... इसलिए चेहरा छिपाने का कोई मतलब नहीं था... उल्टा मैने अपने शर्ट मे फंसा हुआ गॉगल निकाला और उसको पहन कर रोल मे बैठ गया... ताकि देखने वालों को लगे कि लड़का डरा नहीं है. पुलिस की जीप जब कॉलेज के मेन गेट से बाहर निकली तो वही मेन गेट मे वरुण अपनी बाइक पर बैठा हम चारो को देख कर मुस्कुरा रहा था...जिसके जवाब मे फर्स्ट ईयर के लड़को ने भी जब मुस्कुराया तो मुझे समझते देर नही लगी कि ये सब वरुण का किया धरा है...लेकिन सवाल ये नही था...सवाल ये था कि अब हम दोनो बचे कैसे...क्यूंकी यदि रैगिंग के जुर्म मे हम दोनो दोषी साबित हुए तो हमारा करियर ही लगभग ख़त्म हो जाएगा....उपर से हमारी मिड्ल क्लास सोसाइटी के ताने....
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"तुम दोनो वहाँ बैठ जाओ..."टी.आइ. ने फर्स्ट ईयर के दोनो लड़को को एक तरफ बैठने का इशारा किया और हम दोनो को खड़े रहने के लिए कहा....
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पुलिस स्टेशन के अंदर जाकर मैं हर एक जगह को बड़े ध्यान से देखने लगा और जो पुलिस स्टेशन फ़िल्मो मे दिखाया जाता है उससे इस पुलिस स्टेशन कि तुलना करने लगा...
"क्यूँ बे ज़्यादा गुंडागर्दी का भूत सवार है तुझपर"अरुण को बत्ती देते हुए टी.आइ. बोला" साले, शर्ट का बटन बंद कर... वरना अभिये थाने मे बेड़कर डंडा घुसा दूंगा "
टी.आइ. का इतना बोलना था कि अरुण ने फटाफट अपने शर्ट के सारे बटन बंद कर लिए और मैं पुलिस स्टेशन के अंदर लॉक अप की तलाश करने लगा....मैने देखना चाहता था कि उसके अंदर के कैदी कैसे रहते है...उनकी हालत क्या होती है....और जब मुझे वहाँ लॉकअप नही दिखा तो मैने अपनी गर्दन टेढ़ी करके पुलिस स्टेशन के अंदर बनी एक गली की तरफ अपनी नज़र घुमाई....
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"सीधे खड़े रह बे तू "अबकी बार टी.आइ. मुझे धमकाते हुए बोला और मैं एक दम से सीधा तनेन हो गया....
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लगभग आधे घंटे तक हम दोनो को टी.आइ. ने यूँ ही खड़ा करवा के रखा...आधे घंटे बाद फर्स्ट ईयर के कुछ और स्टूडेंट्स और एक टाइपिंग करने वाला एक बंदा अपना समान लेकर अंदर आए ....टाइपिंग करने वाले को टी.आइ. ने अपने से थोड़ी दूर पर रखी एक टेबल पर बैठने के लिए कहा और फर्स्ट ईयर के जो स्टूडेंट्स टाइपिंग वाले के साथ अभी आए थे उन्हे टी.आइ. ने अपने पास खड़ा करवाया....
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"तो.... तुम तीनो उस वक़्त कैंटीन मे ही थे,जब ये सब हुआ..??."
"जी सर..."
"नाम बोलो... अपना अपना ..."
"राजश्री पाण्डेय .."एक ने जवाब दिया...
उस लड़के का नेम राजश्री है,ये सुनकर टी.आइ. ने उसे घूरा.. टी.आई. को लगा कि वो लड़का मज़ाक कर रहा है.
"सच मे मेरा नाम राजश्री है, सर...."
Sana Khan
05-Dec-2021 08:15 AM
Very good
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Fauzi kashaf
02-Dec-2021 09:38 AM
Very very good
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Sana Khan
01-Dec-2021 01:59 PM
Bahut bahut bahut acchi he ۔۔۔very nice
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